Sex Stories

Indian Hindi sex story with sister in Law

दोस्तो, यह बात 2 साल पहले की है उन दिनों की जब मेरी शादी मधु से हुए कुछ महीने ही बीते थे।
मधु मेरी धर्मपत्नी … क्या बदन पाया है उसने … क्या यौवन … और चुदाई का ऐसा शौक कि क्या कहना?

उन दिनों आलम यह था कि यदि मैं व्यवसाय के सिलसिले में पास के शहरों में कभी जाता तो वो मुझे जिद करके चार दिन के जगह दो दिन में ही लौटने को विवश कर देती थी।
मैं भी उसे बेहद प्रेम करता था तो कभी उसकी बात टाल नहीं पाता था और दौड़ा दौड़ा आ जाता था.

फिर बिस्तर पर हमारी घमासान चुदाई होती थी।

खैर ये कहानी मेरी और मधु की नहीं है, मेरी और मधु की कहानी मैं फिर कभी लिखूंगा।

चलिए मेरी इस कहानी चरम सुख की तलाश की नायिका से आपका साक्षात्कार कराते हैं।
उसका नाम है हर्षिता!
उस वक्त वो 35 वर्ष की थी।

यूँ तो रिश्ते में वो मेरी सलहज (साले की पत्नी, भाभी) लगती थी पर ये संबंध इस कहानी में रह नहीं जाता।
यह बात आगे आपको स्वतः ही समझ आ जाएगी।

यदि मैं अपनी हर्षिता को पंक्तिबद्ध करना भी चाहूं तो मेरे शब्द कम पड़ जायें!

वो चंचल शोख अदाओं की स्वामिनी,
अल्हड़ सी मस्ती लिए एक जवानी!
समर्पण की वो असीम मूरत सी,
समा जाने को बेताब खड़ी मेरी सोणी कली।
शांत इतनी कि दर्द और प्रेम की कोई थाह नहीं,
प्रेम प्रसंग पर आये तो रहे ना प्रेम रस में भीगे कोई अंग।

ये बात जून 2018 के बरसात के दिनों की है।
मेरी शादी को हुए कुछ महीने हो गये थे और मैं ससुराल उदयपुर में अक्सर आया जाया करता था।

मैं जयपुर से अपना व्यवसाय चलाता हूँ परंतु काम के सिलसिले में जोधपुर, उदयपुर, लखनऊ, दिल्ली जाना आना लगा रहता है।

मुझे इनमें उदयपुर जाना सबसे प्रिय है जिसका कारण उस वक़्त एक तो उस शहर का सौंदर्य और उस पर ससुराल की विशेष आवभगत!

पर अब उसमें एक विशिष्ट नाम मेरी चरमसुख की साथी हर्षिता का नाम भी जुड़ चुका है।
जो अब सबसे महत्वपूर्ण है।

मुझे 5 दिन का काम था पर मैं काम 3 दिन में ही निपटा कर एक दो दिन ससुराल में विशेषकर हर्षिता के स्वादिष्ट पकवानों का मज़ा लेते हुए बिताना चाहता था।

उस वक़्त तक ना मुझे पता था, ना मेरी साथी हर्षिता को कि उसको जिस सुख की तलाश पिछले कई साल से है, वो अब बहुत करीब है।

सलहज जी हमेशा से ही शांत सुंदर घरेलू महिला थी जिन्हें देख कर कोई अंदाज़ा ही नहीं लगता था कि इस शांत चित्त के पीछे ख्वाहिशों का एक पहाड़ दबा है।
एक अंतहीन तलाश है अनकहे से अधूरे से सुख की … जो सभी सुखों से बड़ा है।

मेरी महिला पाठक यह बात भली भाँति समझ सकती हैं कि चरमसुख कितना अनमोल है; और कैसे अनेकों भारतीय महिलायें उसे बिना अनुभव किए जिए जा रही हैं।

दो वर्षो पूर्व हर्षिता भी उन्ही में से थी।

पर क्या प्यारी सलहज जी को सिर्फ़ चुदाई वाले चरमसुख की तलाश थी या कुछ और भी?
चलिए ढूंढते हैं कहानी में।

हमारा रिश्ता मस्ती मज़ाक का था तो वो काफ़ी खुल के मजाक किया करती थी.
जैसे कि ‘सुना है कि मेरी मधु को आप सोने नहीं देते?’
और मैं शरमा जाया करता था।

आप समझ ही सकते हैं कि नयी नयी शादी के बाद ससुराल वालों की ये बातें अनायास ही हमें शरमाने पर विवश कर ही देती हैं।
यूँ तो हर्षिता जी के दो बच्चे थे पर उनको देख कर लगता नहीं था कि वो 25-26 से अधिक की होंगी।

उन्होंने आज भी स्वयं को बहुत संभाल कर संवार कर रखा है। आज भी कोई बूढ़ा भी उन्हें देखे तो उसका खड़ा हो जाए।
34-28-36 का साइज़ किसी पर भी कहर बरसाने को काफ़ी है।

मेरे साले साहब एक बड़े बैंक के मार्केटिंग विभाग पर कार्यरत हैं और महीने का बड़ा हिस्सा अलग अलग जगहों पर व्यवसाय (क्लाइंट) के लिए बिताते थे।

उनके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी पर शायद उन्होंने दो बच्चे होने के बाद इसे अत्यधिक गंभीरता से ले लिए था या उनका मन अब सेक्स जैसी चीजों में पूरी तरह नहीं लगता था।

खैर उनकी वो जाने, पर इस बात का असर सलहज जी पर पड़ने लगा था।
मैंने कई बार उनकी आँखों में एक अज़ीब सी ख़ालीपन देखा था। कोशिश भी की थी जब हम साथ होते तो कारण जानने की … पर वो हमेशा कोई ना कोई बहाना करके पीछा छुड़ा लेती थी।
पर उन्हें कहा पता था कि उसका समाधान ही उनसे कारण पूछ रहा था।

आज मैं काम से लौटा तो पता चला कि साले साहब अभी अभी माता पिताजी के साथ अजमेर की ओर निकले हैं जो सासू जी का मायका है. और एक दिन रुककर वो आगे अपने काम के सिलसिले में और 4 दिन रुकेंगे।

मैं यह जानकर मंद मंद मुस्काया क्योंकि घर में मैं और हर्षिता जी और उनके बच्चे रह गये थे।
रात का खाना बना, खाया और सोने चल दिए।

उस दिन अनायास ही मैं रात 1 बजे के लगभग जाग गया.
कारण था किसी के सिसकने की आवाज़ … जो हाल की ओर से आ रही थी।

मैंने हाल में आकर देखा तो ये हर्षिता थी.
और मुझे देखते ही वो पलट कर पौंछ कर झूठी मुस्कान के साथ बोली- क्या हुआ? नींद नहीं आ रही हमारी मधु के बिना?

मैंने भी मज़ाक में कह दिया- तो आप आ जाइए सुलाने मधु की तरह!
वो ‘धत तेरे की’ बोलकर शरमा कर जाने लगी।

मैंने रोकते हुए कहा- मेरे लिए पानी लेते आइए. और आइए कुछ बात करनी है।

वो रसोई की ओर गयी और तभी बाहर बारिश होने लग गयी।
उन्होंने आवाज़ लगा कर बोला- चाय भी लाती हूँ।

खैर वो आई और मैंने उन्हें समीप ही बैठा कर पूछा- आप क्यूं रो रही थी? आपसे पहले भी मैंने कई बार आपकी उदासी का कारण पूछा … पर आपने टाल दिया। आज आपको बताना पड़ेगा … मेरी कसम!

ये कसम भी बड़े कमाल की चीज़ है … ऐसे मौकों पर बड़े काम आती है।

उन्होंने मुझसे वादा लिया मैं ये बात किसी को भी नहीं बताऊंगा।
मैंने वादा किया.

फिर वो फफक का रो पड़ी.
मैंने उनका सर अपने कंधे पर रख कर गालों को सहलाते हुए ढाढस बँधाया।

यह पहली बार था जब मेरे दिल में उनके लिए तरंगें उठी. यह अहसास किसी प्रेमिका के कंधे पर सर रखने पर ही आता है।

हर्षिता ने बताया की साले साहब अब उन्हें प्यार नहीं करते, पहले 4-5 साल तो कोई दिन नहीं रहता था जब वो उनके साथ घर आके समय नहीं बिताते थे और रोज़ रात प्यार नहीं करते थे ।
पर अब…
वो बोलते बोलते रुक गयी।

मैंने उत्सुकता वस पूछ लिया- तो अब क्या बदल गया?
वो बोली- अब तो महीनों बीत जाते हैं. ना वो समय बिताते हैं, ना शारीरिक सुख देने की ज़रूरत समझते हैं। शारीरिक ज़रूरत तो मैं जैसे तैसे उंगली करके शांत कर लेती हूँ … पर एक पत्नी को जो वक़्त जो अपनापन चाहिए वो कहाँ से लाये।

मैंने उन्हें समझने की कोशिश की, बोला- सब ठीक हो जाएगा।
और मैंने कहा- और मैं हूँ ना … जब साली आधी घरवाली हो सकती है तो ननदोई भी तो कुछ होता होगा।
वो मेरे मज़ाक पर मुस्कुरा दी।

तभी अचानक बहुत तेज़ बिजली कड़क गयी और उसकी आवाज़ इतनी तेज़ थी की एक बार तो मैं भी धम्म से हो गया पर हर्षिता ने मुझे कस के पकड़ लिया।
मुझे कुछ समझ नहीं आया कि यह अचानक क्या हुआ।

अचानक मेरी और हर्षिता की नज़रें मिली और जैसे हम कहीं खोने से लगे।

अनायास ही मेरे होंठ हर्षिता के काँपते होंठ की ओर बढ़ने लगे।
हमने कितने देर तक चुंबन किया … बता तो नहीं सकता … पर ऐसा लगा वक़्त रुक सा गया था।

जब हम होश में आए तो मौन आँखों से इजाजत माँगी कि आगे बढ़ें?
हर्षिता ने पलकेन झुका दी.
यह इशारा काफ़ी था।

मैंने हर्षिता, जो अब तक साले की पत्नी थी, उसे अपनी बांहों में उठाया और प्यार करते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ रहा था।
घर में मेरे, उसके और बच्चों के सिवा कोई ना था.
और बच्चे सो रहे थे।

हमें अब ना डर था ना अब होश ही रहा था।

मैंने उन्हें ऐसे उठा रखा था जैसे कोई फूल हो जो मेरे से टूट ना जाए, इसकी फ़िक्र हो। मैंने बहुत सलीके से उन्हें बिस्तर पर टिकाया और थोड़ा उठने को हुआ तो हर्षिता ने मुझे खींच लिया।

उसके मौन इज़हार में एक कशिश थी कि बहुत तड़प चुकी हूँ! और ना तड़पा मेरे साजन!

मैंने भी खुद को खो जाने दिया।
मेरे मन में कॉन्डोम का विचार आया पर वो विचार खो सा गया.

और मेरे हाथ अब हर्षिता के उन्नत उरोजों पर बढ़ चले।
उसकी चूची को मसलते हुए मुझे मजा आ गया.
और जैसे वो भी इस आनन्द में खोने सी लगी.

और पता ही ना लगा कब उनकी साड़ी उनके बदन से पेटिकोट के साथ मेरे कमरे के फर्श पर थी।

मेरे होंठों को चूसने और कपड़ों के ऊपर से मसलने का असर उन पर दिखने लगा था।
बारिश के शोर में हरषु की मादक आवाजें आग में घी का काम कर रही थी।
मैं एक अलग ही दुनिया में खोने लगा.

पर यह अहसास मुझमें जिंदा रहा कि जो आज मेरे साथ है, उसे सिर्फ़ चुदाई नहीं, बल्कि प्रेम की आवश्यकता भी है।

हर्षिता ने पलकें उठाई और पूछ लिया- आप अब तक कपड़ों में क्यों हैं?
मैंने कहा- यह काम तो आपको खुद ही करना पड़ेगा।

हर्षिता ने वक़्त ना गंवाया और मेरे कपड़े एक पल में ही ज़मीन पर उसके कपड़ों के साथ पड़े थे।

कपड़ों के अलग होते ही हर्षिता ने मेरे पूरे बदन पर चुंबनों की झड़ी लगा दी।
उन्होंने अपनी ब्रा और पैंटी को भी उतार फेंका।

मैंने भी उसका साथ देने के लिए अपने एकमात्र कपड़े को दूर फेंक दिया।
अब हम दोनों जन्मजात नंगे थे।
आग से तपते बदन, बाहर बारिश और दो लोग जो अब एक हो जाने को बेताब थे।

मैं उनके चूचों पर अपने जीभ फेरने लगा और एक हाथ से दूसरे चूचे को मसलने लगा।
वो पागल सी होने लगी. मुलायम चूचों पर अब कड़कपन आने लगा जो हर्षिता की उत्तेजना को बता रहा था।

मैंने बहुत देर तक चूचों को चूसा।
दोनों को बारी से मर्दन करते हुए इश्क की आग में मैं उन्हें लिए जा रहा था।

दो बदन ऐसे लग रहे थे अब एक हो गये हैं।

मैं चूमते चाटते हुए नीचे नाभि तक आया। मेरा पसंदीदा हिस्सा है नाभि क्षेत्र … मैंने बहुत प्यार से चूसा हर्षी के पेट को … और उन्हें बड़ा आनंद आया।
उन्होंने बताया कि वो एक अलग ही अहसास था।

उससे नीचे उतरने पर आया प्यारी चूत का नंबर!
जो मेरे इंतज़ार में पहले ही पानी पानी हो रही थी।

मेरी जीभ ने जैसे उसके तपते अहसास को ठंडक दे दी।

जीभ चूत को छुते ही हरषु उचक सी गयी और अगले ही पल मेरे सर को चूत पर दबाने लगी; जैसे समा लेना चाहती हो मुझे अपनी चूत में।

मेरी जीभ ने वो काम शुरू कर दिया था जिसमें उसे महारत हासिल थी।
मैं चूत रस का आशिक हूँ।

मेरी जीभ गहराई में और होंठ उसकी चूत की पंखुरियों को चूस रहे थे।
हम दोनों ऐसे ही खोते गये जब तक कि वो एक बार झड़ नहीं गयी।

हर्षिता ने बहुत कोशिश की मुझे हटाने की … पर मैं उसकी अमृत की हर बूँद पी गया।

हर्षिता किसी प्रेयसी की तरह मंत्रमुग्ध सी मेरे सीने से लिपट गयी जैसे मुझमें समा जाना चाहती हो।
मैंने भी उसे अपने आलिंगन में बाँध लिया।

यह पल वासना से तपते जिस्मों में जैसे एक ठहराव का पल सा था।

देखते ही देखते फिर हर्षिता मेरे होंठों पर टूट पड़ी।
इस बार उसका हमला किसी घायल शेरनी सा था।

हर्षिता बोली- मेरे रंगीले साजन … आज जो सुख तुमने दिया है, वो और किसी ने कभी नहीं दिया।

अनायास ही मैं पूछ बैठा- क्या भाई साहब के पहले भी किसी से किया है?
हर्षिता शरमा गयी और बोल पड़ी- आप भी ना! जाइए हम आपसे बात नहीं करते. क्या हम आपको ऐसे लगते हैं? आप दूसरे पुरुष हैं जिनसे मैं इस हद तक बढ़ी हूँ।

हर्षिता धीरे धीरे चुंबन का स्पर्श कठोर करती हुई नीचे बढ़ने लगी।
वो मेरे हर अंग को ऐसे चूम रही थी, चाट रही थी जैसे कोई बच्चा अपने मनपसंद रबड़ी को चाट रहा हो।

मेरी साँसें भी इस अहसास मात्र से रोमांचित हो उठी कि उसका अगला हमला मेरे लंड पर होने वाला था।
किसी गैर विवाहित महिला का इस शिद्दत से प्यार करना मुझे रोमांचित कर रहा था।

उसने मेरे लंड को मुंह में भर लिया।

होंठों की कसावट और जीभ की गर्माहट मुझे आनंद के दूसरे छोर पर लिए जा रहा था।
वो दिन दुनिया से बेख़बर सी मंत्रमुग्ध होकर इस कदर मेरा लंड चूस रही थी कि कुछ पल को लगा जैसे मैं अभी ही झड़ जाऊंगा।

मैंने स्वयं को संभाला, हरषु को एक पल को रोका और 69 की पोजीशन ले ली।
मेरा अनुभव है कि यह अवस्था … जब आपका साथी आपको सुख दे रहा हो, उसे भी वही चरमसुख साथ में मिले तो दोनों तृप्त हो जाते हैं।

वो चाव से मेरा लंड चूसती रही और मैं दूसरी बार उसकी चूत के अमृत का पान करने जा रहा था।

कामुक आवाजों से और चूसने की मद्धम आवाजों से कमरा काममय हो रहा था।
दोनों का जिस्म एक दूसरे को ऐसे चूस जाने को आतुर था जैसे कुछ रह ना जाए … या जैसे आज कयामत आने को है।

उसकी तप्त जिह्वा का स्पर्श मात्र मुझे संसार का सर्वोतम सुख देने को काफ़ी था।

मैंने उसकी चूत की फांकों को फैलाया और और जीभ को अंतरंग गहराइयों में घुसते हुए उसकी चूत को जीभ सख़्त करके चोदने लगा।
हर्षिता आह आह की आवाजें करती हुई लंड चूसने में लगी हुई इस पल का आनंद ले रही थी।

जैसे ही मेरी जीभ ने उसके चूत के अंतिम छोर को छुआ, उसने मेरे पूरे लंड को मुख में भर लिया।
अनायास ही मेरी कमर चल पड़ी और मैं उसके मुंह को चोदने लगा।
वो भी हर पल आनन्द लेती रही।

मैंने कहा- बाहर निकाल दो, मेरा आने वाला है।
हर्षिता ने दो पल रुक के लंड निकल कर कहा- आने दो मेरे साजन, मुझे भी तो अपनी रबड़ी खाने दो। तुम चालू रखो. आज मैं भी पहली बार दो बार बिना चुदे झड़ने वाली हूँ। आप तो सच में चोदन कला में पारंगत है ननदोई जी! आज ननद जी से मुझे सच में जलन हो रही है। काश आप मेरे पति होते!

मैंने कहा- अब तो हूँ ही! आधा ही सही!

अब मैंने अपनी गति बढ़ा दी और उसकी चूत और मेरे लंड ने एक साथ लावा उगल दिया।
जिसे ना मैंने व्यर्थ जाने दिया ना हर्षिता सलहज जी ने।

हम तृप्त थे … फिर भी अभी तड़प शेष थी।

दोनों नंगे ही आजू बाजू लेट कर बाते करने लगे।
साथ में मैं अपनी उंगलियों को उसकी रसीली चूत की फांकों को सहला रहा था।

धीरे धीरे वो फिर उत्तेजित हो गयी और बोली- अब बस भी करो, कब तक तड़पाओगे? अब मेरे प्यासी चूत को अपने प्रेम से पूर्ण भी कर दो.
और ऐसे कहकर उसने मेरे लंड को जो अभी आधा सोया था को सहलाना शुरू कर दिया।

लंड ने भी अपनी प्रेमिका को ज़्यादा इंतज़ार कराना ठीक नहीं समझा और एकदम लोहे के रोड जैसे कड़क हो गया।

हर्षिता ने एक बार फिर उसे चूसना शुरू कर दिया।
थोड़ी देर में मैंने उन्हें रोका ताकि फिर झड़ ना जायें हम दोनों चुदाई से पहले।

अब लंड को मैंने हरषु की चूत पर रखा और सहलाने लगा.
मेरी हरकत हरषु के तन बदन में आग लगा रही थी.

उसने कतर नज़र से मेरी ओर देखा और बोली- मार ही डालोगे क्या? तड़पाना बंद करो और अपने लंड को मेरी मुनिया रानी में डाल दो. अब बर्दाश्त नहीं हो रहा।

मैंने भी देर करना उचित नहीं समझा और एक ही झटके में अपना लंड अंदर कर दिया।

हर्षिता अचानक हमले से आह कर बैठी और मुस्कुरा कर बोली- मार ही डालोगे क्या?
मैंने भी उतर दिया- ऐसे कैसे? कोई अपनी जान को मारता है क्या? तुम्हें तो हम अब छोड़ेंगे नहीं। इतना चोदन करेंगे कि तुम कहोगी कि बस ननदोई जी, जान बक्श दीजिए। आप तैयार हैं ना जन्नत की सैर को?

उनका हाँ का इशारा पाते ही मैं पहले मद्धम गति से चोदने लगा।

मेरा हर प्रहार ऐसे जा रहा था जैसे कोई सितार की तारों पर उंगलियाँ चला रहा हो।
चूत और लंड के टकराने से एक मद्धम संगीत निकल रहा था जो इस कामुकता में और चार चाँद लगा रहा था।

उस पर कामुक आहें आग लगा रही थी।

गति को मैं लगातार बढ़ा रहा था और चूत की गहराई को जैसे भेदे जा रहा था।

चूत में लंड की रफ़्तार अब मैं बढ़ने लगा और हर्षिता आह आह किए जा रही थी। उसके नीचे से धक्के बता रहे थे कि वो इस पल को कितना मज़ा ले रही है।

हमने अपना पोज़ बदला और कुत्ते कुतिया की पोज़ में आ गये।
मैंने फिर से एक बार बिना बोले एक झटके में लंड पेल दिया और घनघोर चुदाई शुरू कर दी।
यह मेरा पसंदीदा पोज़ है।

मेरा लंड अपने विकराल रूप में चूत की धज्जियाँ उड़ा रहा था। नायिका की कामुक आहें इसमें घी का काम कर रही थी।

हर्षिता ने कहा- और तेज़ करो … आज फाड़ दो … बना लो मुझे अपनी कुतिया! इस निगोड़ी ने मुझे बहुत परेशान किया है। आज इसकी अच्छे से मरम्मत हुई है।
और भी जाने क्या क्या वो बोलती रही।

मैंने फिर से जगह बदली और उसके एक टाँग को अपने एक हाथ पे उठा कर दुगनी रफ़्तार से चोदने लगा।
मैं चाहता था कि जिस चरमसुख की हर्षिता को तलाश है उसमें हम दोनों एक साथ स्खलित हों।

बाहर बारिश का शोर और अंदर चुदाई का तूफान अब ठहरने को था।
मुझे अंदर से एक गर्म लावे का अनुभव हुआ और मेरे लंड ने भी उसी पल अपनी बरसात अंदर ही कर दी।

उस रात मेरे वीर्य की कितनी मात्रा निकली मुझे खुद नहीं पता!
पर हाँ अन्य दिनों से कहीं ज़्यादा था।

हम दोनों थक कर चूर हो चुके थे पर ऐसा लग रहा था कि अभी भी प्यास अधूरी है।

हर्षिता उठी और बाथरूम में जाकर खुद को साफ किया और नग्न ही आकर मेरे बांहों में लेट गयी।
उस रात हमने बहुत देर तक बात की।

दोस्तो, अक्सर पुरुष सहवास के बाद सो जाते हैं जबकि महिलाओं को उसके बाद एक अलग प्यार और स्पर्श की ज़रूरत होती है। जिसके बिना प्यार अधूरा है।

आज हर्षिता बहुत प्रसन्न थी; उसे जिस चरम सुख की तलाश थी, वो उसे अपने ननदोई में मिला था।

अभी हमारे पास कुछ और दिन शेष थे और हमने इसका भरपूर उपयोग किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *